रोशनी का त्यौहार, बुराई पर अच्छाई की जीत, अंधकार पर प्रकाश और अज्ञान पर ज्ञान का प्रतीक है! ‘दीप प्रतिपदा उत्सव’ जिसे दीवाली के रूप में जाना जाता है, रोशनी को एक उत्सव के रूप में मनाने की शुरुआत करता है। दीप का अर्थ है रोशनी, प्रतिपदा का अर्थ है दीक्षा और उत्सव का अर्थ है त्यौहार। यह कई दिनों तक मनाया जाता है।
दीवाली मनाने के पिछे विभिन्न संस्कृति और धर्मों में विभिन्न ऐतिहासिक कहानियां हैं। इसे मुख्य रुप से प्राचीन वैदिक संस्कृति और परंपरा के अनुयायी, हिंदुओं का त्यौहार मानते है| इसके अलावा यह उत्सव पुरी दुनिया में सिक्ख, जैन और बुद्धीस्ट धर्म में माननेवाले भी मनाते है|
हिंदू इस दिन निर्दयी दानव नरकासुर की मृत्यू का उत्सव मनाते है जिसे भगवान श्री कृष्णने मारा था| यह मान्यता है की भगवान श्रीराम, सीता और लक्ष्मण अपना 14 वर्षों का वनवास पूरा करके वापस लौटे थे, और अयोध्या के लोगो ने तीनों दैवीय व्यक्तिओं का मार्ग के दोनो और सजाकर और दिये जलाकर स्वागत किया था| तब से दिवाली त्यौहार पर इस दिन दिये जलाने की परंपरा चली आई है| जैन और बुद्ध धर्म के लोगों के पास त्यौहार मनाने की अपनी ऐतिहासिक घटनाए है| जैन इस दिन को अपने 24 वे तिर्थंकर भगवान महावीर के निर्वाण प्राप्ती के रुप में मनाते है| तो बुद्धिस्ट यह दिन दिये जलाकर मनाते है क्यों की इस दिन भगवान गौतम बुद्ध 18 सालों के बाद कपिलवास्तू में लौटे थे| तो सिक्ख लोग इसे गुरु हरगोविंद सिंह जी के जेल से घरवापसी के रुप में मनाते है|
आइए हम इस इतिहास को एक तरफ रखें और आज के जमाने में दिवाली मनाने के बारे में सोचें। कितने लोग इन दिनों में खुशी से दिवाली मनाते हैं?
आज जहा कोविड-19 महामारी ने 8 करोड़ से ज्यादा लोगों को बेरोजगार बना दिया है, तो यह ‘दिवाली साल 2020’हम कैसे मना रहे हैं? महामारी ने पूरी दुनिया को आर्थिक, शारीरिक, मानसिक और सामाजिक रूप से तहस-नहस कर दिया है। व्यवसाय भारी नुकसान और गिरावट का सामना कर रहे हैं।
यह न केवल एक व्यक्ति को बल्कि पूरे परिवार को प्रभावित करता है। ऐसी परिस्थिति में वह दिवाली कैसे मनाते हैं? ऐसे कठिन समय में भी, भारतीय दूसरों से पैसे उधार लेकर दिवाली मनाते हैं, क्यों कि उन्हें डर है कि यदि वे पूजा और अनुष्ठान नहीं करते हैं, तो देवी और देवता उनसे नाराज़ हो सकते हैं|
दिवाली के दौरान हम घर / कार्यस्थल की अच्छी तरह सफाई क्यों करते हैं?

दिवाली के अवसर पर, हम घर / कार्यस्थल को साफ करते हैं और घर से अनावश्यक, उपयोग में ना आनेवाली वस्तुए या चीजों को फेंक देते हैं।
टूटा हुआ इलेक्ट्रॉनिक सामान जैसे घड़ी, टेलीविजन, मिक्सर, पंखा, कंप्यूटर, लैपटॉप इत्यादि या टूटी हुई वस्तुएं जैसे हैंगिंग लैंप, कांच की चीजें जैसे प्लेट, फोटो फ्रेम, फूलदान, फर्नीचर, आदि को घर / कार्यस्थल से हटा देना चाहिए। यह टूटी हुई वस्तुएं भी उर्जा के लिए बाधा हो सकती है।
यह अनावश्यक वस्तुए घर / कार्यस्थल में विश्व शक्ति के प्रवाह में रुकावट डालती हैं। जब हम इन अनावश्यक वस्तुओं को हटाते है, तो विश्व शक्ति सुचारू रूप से बहती है और परिवार का प्रत्येक सदस्य घर के अंदर शांति और सुकून महसूस करता है।
हम दिवाली के दौरान अपने घरों को पेंट या पुताई क्यों करते हैं?
अगर दीवारों के रंग फीके या खराब हो गये हैं, दीवार को कुछ नुकसान हो गया है, तो यह उस जगह के आसपास नकारात्मकता पैदा करता है। घर को स्वच्छ रखना, ठीक करना और पेंट या पुताई करने से घर के अंदर एक सकारात्मक माहौल बनाने में मदद मिलती है।

घर को रंग देना और चुना लगाने से भी कीड़ों को मारने में मदद मिलती है। दिवाली सर्दियों के मौसम में आती है और सर्दियों के मौसम में कीड़े प्रजनन करते हैं। घर को पेंट करने या सफेद करने से कीट और कीड़े दूर रहते हैं। इससे घर प्रसन्न और आनंददायक रहता है |
हम दिवाली के दौरान भव्य पूजा क्यों करते हैं?

यह मान्यता है कि विस्तृत और भव्य दिवाली पूजा करने से देवी महालक्ष्मी- जो धन की देवी है उनका आशीर्वाद पाने में मदद मिल सकती है| माना जाता है कि इस अनुष्ठान को घर में समृद्धी, धन, स्वास्थ्य को अधिक मात्रा में आमंत्रित करने के लिए किया जाता है|
दिवाली के दौरान हम बहुत सारी मिठाइयाँ, नमकीन बनाकर नए कपड़े क्यों पहनते है?
दीपों के इस त्यौहार के दौरान हम मुँह में पानी लाने वाली सभी प्रकार की पारंपरिक दिवाली की मिठाइयाँ और नमकीन बनाते हैं। दिवाली की मिठाइयाँ और नमकीन का उपयोग, पूजा के लिए किया जाता है और रिशतेदारों और प्रियजनों को उपहार में दिया जाता है। दिवाली के उपहार, मिठाई और एक-दूसरे को शुभ दीपावली की शुभकामनाएं देने से परिवार, दोस्तों, सहकर्मियों आदि के बीच अच्छे संबंधों को बनाए रखने में मदद करता है और व्यवसायों के दीर्घकालिक सहयोग के लिए भी मदद करता है।
त्यौहार के समय के दौरान नए कपडे पहनना अपने आप की सराहना करने जैसा है, अधिक आत्मविश्वास निर्माण होता है और यह अपने आप में सकारात्मकता की भावना भी लाता है|

हम दिवाली के दौरान मुख्यद्वार को बहुत ज्यादा महत्व क्यों देते है?

मुख्य द्वार को हमेशा फूलों, आम के और केले के पत्तो, दिवाली लाईट्स, मिट्टी के दीये की सजावट आदि से सजाया जाता है। हम मुख्य द्वार के बाहर सुंदर रंगोली और देवी लक्ष्मी के पैरों के निशान भी बनाते हैं। यह देवी लक्ष्मी को हमारे घरों में प्रवेश करने और समृद्धि, धन, और खुशी लाने के लिए एक निमंत्रण होता है। यह गतिविधियाँ देवताओं, अनुष्ठानों, त्योहारो और समारोहो में हमारी आस्था और विश्वास का आधार बनती है|
अगर आप सच पूछें, “क्या आपने कभी भगवान/देवी को देखा है? उत्तर स्पष्ट होगा “नहीं!” और अगर आप पूछें, “भगवान / देवी कहाँ है?” इसका जवाब हैं, “वह हर जगह है।“
भगवान/देवी अदृश्य है लेकिन हर जगह मौजूद है। उसी तरह, विश्व में एक अदृश्य चेतना शक्ती है जिसे हम देख नहीं सकते है और वह हर जगह मौजूद है, जो कि विश्व शक्ति है।
जब देव/देवी और विश्व शक्ति, दोनो अदृश्य है और हर जगह मौजूद है, तो हम देव/देवी को विश्व शक्ती क्यों नही कहते है? जब हम अपने घरों में देवी लक्ष्मी को आमंत्रित करते है, तो हम अपने घरों में विश्व शक्ति को आमंत्रित कर रहे हैं।
हर धर्म में उनका अपना सर्वोच्च ईश्वर होता है – जैसे हिंदुओं में भगवान शिव/विष्णू या फिर दुर्गा देवी है, मुसलमानों में अल्लाह और ईसाइयों के पास यीशु है। विश्व का अपना सर्वोच्च ईश्वर है जो विश्व शक्ति है। इस प्रकार विश्व शक्ति सार्वभौमिक सर्वोच्च ईश्वर है। यह विश्व शक्ती आपके जीवन की सभी इच्छाए पूर्ण करती है, भले आपका धर्म कोई भी क्यों न हो।
लेकिन सिर्फ त्यौहार मनाना और अपने घरों में देव/देवी या विश्व शक्ति को आमंत्रित करने से हमें जीवन में वह नहीं मिल सकता जो हम चाहते है और हमें जिसकी जरुरत है। यह केवल १५ दिन या एक महिने के लिए घर में सकारात्मक माहौल बनाने में मदद करता है। लेकिन जैसे ही त्यौहार का उत्साह खत्म हो जाएगा हम अपनी दैनिक जीवन की समस्याओं में फिर से घिरे हुए रहेंगे|
परिवेश वो है जहाँ हम अपना ज्यादा से ज्यादा समय व्यतीत करते है| आमतौर पर हम हमारा ज्यादा से ज्यादा समय अपने घर/कार्यस्थल पर गुजारते है| 24 घंटो में से लगभग 20 घंटे हम इन दो स्थानों पर गुजारते है|
मानव गुरु का दिव्य ज्ञान एक वैज्ञानिक सिद्धांत है और यह प्राचीन भारतीय मुल्यो और संस्कृतिपर आधारित है। सिर्फ विश्व शक्ति के साथ संपर्क में आकर 9 से 180 दिनों में यह पुरे परिवार को आनंदमय जीवन का मार्ग दिखाता है फिर चाहे उनका धर्म कुछ भी हो।
व्यक्ति की अपनी ऊर्जा होती है जिसकी कुछ कंपन तरंग होती है। व्यक्ति जहां रहता है और जहां काम करता है उसकी अपनी ऊर्जा होती है जिसकी कुछ कंपन तरंग होती है। विश्व की भी कुछ कंपन तरंगो के साथ अपनी ऊर्जा होती है। जब व्यक्ति और उसका घर और कार्यस्थल दोनो विश्व शक्ति के संपर्क में आते है, तो विश्व शक्ति व्यक्ति के शरीर और घर और कार्यस्थल में संचालित होती है। इससे शरीर की अरबों कोशिकाओं को जब आवश्यकता होती है तब विश्व शक्ति की आपुर्ति होने में मदद होती है।
जब शरीर के अरबों कोशिकाओं और अंगो को पर्याप्त मात्रा में विश्व शक्ति मिलती है; वो ज्यादा ऊर्जान्वित और क्रियाशील बनते है। यह पूरे शरीर के सुचारू कामकाज को सुनिश्चित करता है। इसके परिणाम स्वरुप परिवार का हर एक सदस्य शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, आर्थिक और बौद्धिक रुप से सशक्त होता है।
जब आप मानव गुरु के मार्गदर्शन का पालन करेंगे, तो अगले 9 से 180 दिनों में आप और आपके परिवार के सदस्य आनंदमय जीवन का अनुभव लेना शुरू करेंगे। यही दीवाली के पर्व की वास्तविक समृद्धि और अर्थ है।

अपने दिव्य ज्ञान के द्वारा लाखों परिवारों की जिंदगी को 9 से 180 दिन में परिवर्तन करवाया है।